मध्य प्रदेश में बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन के गढ़क्षेत्र में प्राचीन भैरव पर्वत पर माता गढ़कालिका विराजित है। दक्षिण भारतीय परंपरा में यह मंदिर शक्तिपीठ या देवी पीठ माना गया है। गर्भगृह में माता कालिका की मूर्ति मुखाकृति के रूप में विराजित है। ऐसे भयानक रूपवाली आदि माता हंसती हुई दिखाई देती है। गढ़कालिका की मूर्ति के आसपास माता महालक्ष्‌मी व माता सरस्वती भी विराजित हैं।

संस्कृत के महान कवि कालीदास को माँ गढ़कालिका के आशीर्वाद से ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। ऐसी मान्यता है कि प्रारंभिक जीवन में कालीदास अनपढ़ और मूर्ख थे। कालीदास एक बार एक पेड़ की जिस डाली पर बैठे थे उसी को काट रहे थे। इस घटना पर उनकी पत्नी विद्योत्तमा ने उन्हें ऐसी फटकार लगाई कि इसके फलस्वरूप तपस्या कर महामूर्खों की श्रेणी में आने वाले कालीदास गढ़कालिका देवी की उपासना कर महाकवि कालिदास बन गए। इसलिए माँ गढ़कालिका महाकवि कालिदास की आराध्यदेवी मानी जाती हैं।

ज्योतिर्विद डा.घनश्याम ठाकुर के अनुसार माता गढ़कालिका स्वरूप संहारकारिणी शक्ति स्वरूप है, जो भयोत्पादक मुखाकृति में भी सर्वथा दर्शनीय है। ललाट पर हिंगलू से बना हुआ वृहद् गोलाकार रक्ताभ टीका है, दोनों नेत्र विशाल हैं और माता की जिह्वा लपलपाती हुई प्रतीत होती है। दोनों चरण दर्शनीय है। जिन पर चांदी के भारी कड़े शोभित हैं। 12 स्तंभों पर बने सभामंडप में दीवारों पर विभिन्ना्‌ देवियों के चित्रों का अंकन दिखाई देता है। परिसर में दीपमालिका स्थापित है,नवरात्र में दीपमालिका प्रज्वलित की जाती है। आकर्षक विद्युत सज्जा मंदिर में प्रवेश करने से पहले ही भक्तों का मनमोह लेती है।

शक्ति संगम तंत्र में उल्लेख

गढ़कालिका माता का मंदिर शहर के प्रमुख प्राचीन देवी मंदिरों में से एक है। शक्ति संगम तंत्र में भी माता कालिका का अवस्थान बताया गया है। देवी स्थान की वर्तमान भौगोलिक स्थिति में यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि कालांतर में मंदिर पर्वत पर विराजित था, क्योंकि मंदिर के आसपास के मार्ग काफी नीचे हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए घाटी वाले मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है। विभिन्ना्‌ जनपदों के काल खंड में मंदिर के जीर्णोद्धार के प्रमाण भी मिलते हैं।