हिमालय की वादी को देवताओं और भगवानों का निवास स्थान कहा जाता है आकाश छूती पर्वत श्रंखला उनको इतिहास की अहम कड़ी और इंसानी सभ्यता का संभवत सबसे मुख्य भाग भी कहा जा सकता है आज वैज्ञानिक भले ही इसे इंसानी सभ्यता से भी पुराना मानते हो

लेकिन बिहार राज्य में एक ऐसा पर्वत भी मौजूद है जिसे हिमालय से भी पुराना कहा जाता है देवताओं और असुरों ने सतयुग में समुद्र मंथन किया था जिसमें वासु की नाग को मंदराचल पर्वत पर लपेटकर 14 रत्नों को हमारी सृष्टि में लाया गया था मित्रों आज भी समुद्र मंथन का वह पर्वत भारत की भूमि में मौजूद है जिसकी पूरी जानकारी आपको मिलेगी तो कमेंट में शिव ही सत्य है लिखना ना भूले 

बिहार के बांका जिले में स्थित है 700 फुट की ऊंचाई वाला एक पहाड़ इसे मंदराचल पर्वत या मंदार पर्वत भी कहा जाता है सतयुग में इसी पर्वत को मथनी की तरह इस्तेमाल किया गया था और बासुकीनाथ को इस के अगल-बगल लपेटा गया था शीर सागर से रत्नों को निकालने के लिए समुद्र मंथन हुआ जिसमें 14 रत्न निकले इसमें सबसे खास रत्न अमृत धन्वंतरी देवी लक्ष्मी कामधेनू कल्पवृक्षा और हलाहल विष था यही कारण है इस पर्वत को सृष्टि उद्धार का कारक माना जाता है समुद्र मंथन से निकला विश् भगवान शिव ने जिस महासंघ से पिया था उसकी आकृति आज तक इस पर्वत पर मौजूद है 

इस पर्वत का महत्व सनातन धर्म के साथ-साथ जैन धर्म में भी है जैन धर्म के 92 तीर्थंकर बासु पूर्व की निर्वाण स्थली आज भी यहां पर मौजूद है यही कारण है यहां पर आपको ज्जैन मंदिर भी देखने को मिल जाएगा इस पर्वत के पास ही आपको पाप हरनी तालाब देखने को मिल जाएगा मान्यता के अनुसार यहां पर स्नान करने के बाद आत्मा और शरीर दोनों के पाप धुल जाते हैं इस तालाब को खास इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि हलाहल विष को भगवान शिव ने पी लिया था लेकिन शिव सागर से जल के कुछ भाग का असर अब तक इस तालाब में मौजूद है जो हमारे जैसे साधारण मनुष्य के स्नान से उसे इतना लाभ हो जाता है इसी तालाब के मध्य में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का मंदिर मौजूद है इस पर्वत के शिखर पर भी भगवान विष्णु मंदिर और जैन मंदिर मौजूद है 

 

लेकिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण की इस पर्वत पर आपको उकेर कर बनाई गई मूर्तियां मिलेंगी जो बेहद प्राचीन मानी जाती है यहां पर भगवान शिव कामधेनु गाय और वराह अवतार की मूर्तियां मौजूद हैं जो 900 साल पुरानी मानी जाती हैं लेकिन यहां की स्थानीय लोग इसे थी ज्यादा प्राचीन मानते हैं इसी के साथ यहां पर सीता कुंड शंख कुंड और पाताल कुंती मौजूद है जो इतिहास की धारा में इस पर्वत का महत्व और ज्यादा बढ़ा देता है वैसे तो सारा साल यहां पर सैलानी आती रहती हैं लेकिन मकर सक्रांति को यहां पर अलग सा ही माहौल होता है

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