श्री सोमनाथ के इस वैभव सम्पन्न पवित्र स्थान पर मुग़लो के अनेक हमले हुए कहा जाता है कि यह मंदिर ईसा पूर्व में भी अवस्थित था सोमनाथ मंदिर दक्षिण भारत के पश्चिमी छोर पर गुजरात में स्थित है अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर है गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित हे यह मंदिर

इस मंदिर पर सबसे पहले 725 ईस्वी में सिंध के सूबेदार अल जुनैद ने हमला किया था और इसे तुड़वा दिया था और यहाँ से अनगिनत खजाना लूट ले गया था  फिर राजा नागभट्ट जो प्रतिहार राजा थे, उन्होंने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण कराया 

सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनवी ने, 1024 ईस्वी में दूसरी बार तोड़ गजनवी ने न केवल शिवलिंग को ही तोड़ा, बल्कि हजारों बेकसूर लोगों की जान भी ली कहा जाता है कि उस दिन गजनवी ने 18 करोड़ का खजाना लूटा और अपने शहर गजनी ,अफगनिस्तान को लौटने के लिए कूच कर गया उसके बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज के द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ 1093 ईस्वी में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग किया। इस मंदिर के सौंदर्यीकरण में,1168 ईस्वी में सौराष्ट्र के राजा खंगार और विजयेश्वर कुमारपाल ने काफी सहयोग किया था

जब दिल्ली में खिलजीवंश का शासन था, उस समय 1297 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खान ने गुजरात पर हमला कर फिर सोमनाथ मंदिर को तोड़ा। और मंदिर की अथाह धन-संपत्ति को लूटकर ले गया। फिर से हिन्दू राजाओं ने इसे बनवाया

1395 ईस्वी में जब गुजरात में मुजफ्फरशाह का शासन था, मुजफ्फरशाह ने फिर सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और मंदिर के सारे चढ़ावे लूट ले गया

1412 ईस्वी में मुजफ्फरशाह का बेटा अहमद शाह ने फिर से सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और लूटा

बाद में जब भारत में मुगल वंश का शासन हुआ, तो मुगल वंश के सबसे क्रूर शासक औरंगजेब ने, 1665 ईस्वी में  सोमनाथ मंदिर को फिर से नष्ट-भ्रष्ट किया। पूजा अर्चना करते हुए हजारों भक्तों को बेरहमी से मार दिया गया।लेकिन हिंदुओं की आस्था का अंत नहीं था, वे फिर भी उस स्थान की पूजा करते रहे

औरंगजेब ने 1706 ईस्वी में दोबारा सोमनाथ को तोड़ा और हजारों लोगों का कत्लेआम किया। बाद में शिवाजी महाराज के अदम्य साहस और अनेक युद्धों के बाद जब यह क्षेत्र मराठाओं के अधिकार में आया, तब 1783 ईस्वी में इंदौर की, शिवभक्त रानी अहिल्याबाई ने मूल मंदिर से थोड़ा सा हटकर, पूजा के लिए सोमनाथ महादेव का नया मंदिर बनवाया

भारत की आजादी के बाद गुजरात के महान शेर सपूत, सरदार बल्लभभाई पटेल ने, महाराष्ट्र के काकासाहब गाडगीलजी की सलाह से श्री सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया। उनकी मृत्यु के बाद इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ भारतीय शिल्पकला की स्वर्गीय सुंदरता के इस बेजोड़ नमूने ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है शुक्रवार दिनांक 11 मई 1951 को सुबह 6.46 में इस मंदिर में श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की प्राणप्रतिष्ठा उस समय के भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसादजी के कर कमलों द्वारा और वेदमूर्ति तर्कतीर्थ लक्ष्मण शास्त्री जोशीजी के वेदघोष से बड़ी धूमधाम से की गई।