शास्त्रों के अनुसार भादों मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को श्री गणेश का धरती पर अवतरण हुआ था। श्री गणेश का जन्म माता पार्वती के उदर से नहीं हुआ था बल्कि माता पार्वती ने अपनी शक्ति से उनका निर्माण किया था। इससे सम्बंधित एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है
कथा के अनुसार एक बार शिवजी के गण नंदी ने माता पार्वती की आज्ञा पालन में गलती कर दी। जिससे रुष्ट होकर माता पार्वती ने स्वयं एक बालक के निर्माण का निश्चय किया। माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल और उबटन से एक पिंड का निर्माण किया और अपनी शक्ति से उसमे प्राण डाल दिए। माता पार्वती ने उससे कहा की तुम मेरे पुत्र हो, तुम्हारा नाम गणेश है। तुम्हें सिर्फ मेरी ही आज्ञा का पालन करना है और किसी की भी नहीं। अब मैं स्नान करने अंदर जा रही हूँ। ध्यान रहे जब तक मैं स्नान करके वापस नहीं आऊं कोई भवन के अंदर नहीं आ पाए।


भगवान शिव को क्रोधित देखकर माता पार्वती ने उनसे इसका कारण पूछा। तब भगवान शिव ने उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया।यह सुन देवी पार्वती क्रोधित हो विलाप करने लगीं। उनकी क्रोधाग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने मिलकर उनकी स्तुति की और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी (गज) के बच्चे का सिर काट कर बालक के धड़ से जोड़ दिया।